Bihar Chunav: भागलपुर की 7 सीटों पर 'एक अनार सौ बीमार', BJP-JDU से RJD-कांग्रेस तक टिकट के दावेदारों ने बढ़ाई हाईकमान की टेंशन
BJP-JDU से RJD-कांग्रेस तक दावेदारों की लाइन, बगावत का डर, हाईकमान पर दबाव

Bihar Chunav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आधिकारिक घोषणा भले ही अभी नहीं हुई हो, लेकिन भागलपुर जिले की सात विधानसभा सीटों पर टिकट को लेकर घमासान अभी से शुरू हो गया है। स्थिति ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली हो गई है, जहां हर प्रमुख सीट पर एनडीए और महागठबंधन, दोनों खेमों में दर्जनों दावेदार अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। इन दावेदारों ने पटना से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग तेज कर दी है, जिससे बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और लोजपा (आर) सभी दलों के शीर्ष नेतृत्व की टेंशन बढ़ गई है।
भागलपुर की इन 7 सीटों पर है मुख्य मुकाबला
भागलपुर जिले के अंतर्गत कुल सात विधानसभा सीटें आती हैं: भागलपुर (शहरी), कहलगांव, सुल्तानगंज, नाथनगर, गोपालपुर, बिहपुर और पीरपैंती। पिछले चुनावों के समीकरणों के आधार पर ये सभी सीटें राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस बार हर पार्टी में टिकट चाहने वालों की लंबी कतार है। कई दावेदार पिछले पांच सालों से क्षेत्र में सक्रिय हैं और खुद को भावी उम्मीदवार मानकर प्रचार कर रहे हैं। ऐसे में किसी एक को टिकट देना और बाकियों को मनाना पार्टियों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
एनडीए में सीट शेयरिंग और उम्मीदवार… दोनों स्तर पर चुनौती
एनडीए के भीतर चुनौती दोहरी है। पहली चुनौती सीट-बंटवारे की है। उदाहरण के लिए, भागलपुर शहरी सीट पारंपरिक रूप से बीजेपी के पास रही है, लेकिन जेडीयू के भी कई मजबूत नेता यहां से दावेदारी कर रहे हैं। वहीं, सुल्तानगंज और नाथनगर जैसी सीटों पर जेडीयू का कब्जा रहा है, लेकिन बीजेपी और लोजपा (आर) भी इन सीटों पर अपना दावा पेश कर रही हैं। जब तक यह तय नहीं होता कि कौन सी सीट किस पार्टी के खाते में जाएगी, तब तक उम्मीदवारों की बेचैनी जारी रहेगी। जो भी सीट जिस पार्टी को मिलेगी, उसके बाद उस पार्टी के भीतर टिकट के लिए असली घमासान मचेगा।
Bihar Chunav: महागठबंधन में भी आरजेडी और कांग्रेस के बीच फंसा पेंच
यही हाल महागठबंधन का भी है। आरजेडी और कांग्रेस के बीच अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा। कहलगांव जैसी पारंपरिक कांग्रेस सीट पर इस बार आरजेडी के भी कई नेता अपनी दावेदारी जता रहे हैं। वहीं, बिहपुर और गोपालपुर जैसी सीटों पर आरजेडी के भीतर ही कई मजबूत स्थानीय नेता टिकट की दौड़ में हैं। कांग्रेस भी जिले में अधिक सीटों की मांग कर रही है ताकि वह अपने पुराने जनाधार को वापस पा सके।
सभी दलों के हाईकमान को सबसे बड़ा डर ‘बगावत’ का है। टिकट नहीं मिलने पर कई मजबूत और स्थानीय पकड़ रखने वाले नेता बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं या पाला बदलकर विरोधी खेमे में जा सकते हैं। ऐसा होने पर पार्टी का पूरा वोट बैंक बंट जाएगा और इसका सीधा फायदा प्रतिद्वंद्वी को मिलेगा। इसलिए, पार्टियां फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं और हर सीट पर जातीय समीकरणों और उम्मीदवार की वफादारी को परखने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहती हैं।