Prashant Kishor Jan Suraaj: पहली लिस्ट आते ही 'जन सुराज' में बवाल, टिकट न मिलने पर हंगामा, PK बोले- 'यह घर-परिवार की बात है
जन सुराज ने जैसे ही 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, पार्टी दफ्तर में टिकट न पाने वाले नेताओं और उनके समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी।

Prashant Kishor Jan Suraaj: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी पहली सूची जारी करते ही प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ पार्टी में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई। गुरुवार को जैसे ही पार्टी ने पटना में 51 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया, पार्टी कार्यालय में उन नेताओं और उनके समर्थकों ने हंगामा और नारेबाजी शुरू कर दी, जिन्हें इस सूची में जगह नहीं मिली थी। ‘बदलाव’ की राजनीति का वादा करने वाली पार्टी के लिए यह पहली बड़ी चुनौती मानी जा रही है। हालांकि, पार्टी संस्थापक प्रशांत किशोर ने इस पूरे विवाद को ‘घर-परिवार की बात’ कहकर शांत करने की कोशिश की है।
क्यों हुआ हंगामा?
जन सुराज ने गुरुवार को अपनी पहली सूची में 51 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। पार्टी का दावा है कि इन उम्मीदवारों का चयन जमीनी स्तर पर जनता की राय और एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत किया गया है। लेकिन, सूची जारी होते ही कई ऐसे नेता, जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे और टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे, खुद को नजरअंदाज पाकर नाराज हो गए। इन नेताओं के समर्थकों ने पटना स्थित पार्टी मुख्यालय पर इकट्ठा होकर नारेबाजी की और चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
विवाद पर क्या बोले प्रशांत किशोर?
बढ़ते विवाद के बीच, प्रशांत किशोर ने खुद मीडिया के सामने आकर स्थिति को संभाला। उन्होंने mécontentement को स्वाभाविक बताते हुए एक सधी हुई प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “यह घर-परिवार की बात है। जब एक परिवार में इतने लोग हों, तो कुछ लोगों को टिकट नहीं मिलने पर उनकी नाराजगी या निराशा होना स्वाभाविक है। उनकी नाराजगी जायज है, क्योंकि टिकट को लेकर उम्मीदें थीं। लेकिन जन सुराज में न पैसे का दबदबा है, न बाहुबल का असर। हमने समाज से जो वादा किया था, हम वही निभा रहे हैं।”
प्रशांत किशोर ने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी की अपनी सीमाएं हैं और हर किसी को टिकट देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि 243 उम्मीदवार तो चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके अलावा भी हजारों कार्यकर्ता जन सुराज का चेहरा हैं जो बिहार में व्यवस्था परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं।
क्या है इस विवाद के मायने?
Prashant Kishor Jan Suraaj के लिए यह घटना एक बड़ी सीख है। एक तरफ जहां पीके पारंपरिक राजनीतिक दलों के परिवारवाद और टिकट बंटवारे में भ्रष्टाचार पर सवाल उठाते रहे हैं, वहीं अब उन्हें अपनी ही पार्टी में टिकट वितरण की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह विवाद विपक्ष को भी जन सुराज पर हमला करने का एक मौका देता है। हालांकि, प्रशांत किशोर की त्वरित और शांत प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि वह इस तरह की आंतरिक चुनौतियों के लिए पहले से तैयार थे। अब देखना यह होगा कि पार्टी इन नाराज नेताओं को कैसे मनाती है और चुनाव से पहले अपनी एकजुटता बनाए रखती है।