Bihar Chunav: BJP के घुसपैठ वाले नैरेटिव से JDU असहज, नीतीश कुमार के सेक्युलर वोट बैंक पर पड़ेगा असर?
बीजेपी का 'घुसपैठ' मुद्दा JDU को नहीं आया रास, नीतीश के सेक्युलर वोट बैंक पर खतरा।

Bihar Chunav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान भले ही न हुआ हो, लेकिन सत्ताधारी एनडीए (NDA) के भीतर चुनावी रणनीति को लेकर मतभेद उभरने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सीमांचल क्षेत्र में ‘घुसपैठ’ (Infiltration) के मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठाना शुरू कर दिया है, लेकिन बीजेपी का यह नया नैरेटिव उसके अपने ही सबसे बड़े सहयोगी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू (JDU) को ‘असहज’ कर रहा है। जेडीयू को डर है कि इस ध्रुवीकरण वाले मुद्दे से उसके परंपरागत ‘सेक्युलर’ वोट बैंक पर बुरा असर पड़ सकता है।
सीमांचल में बीजेपी ने उठाया ‘घुसपैठ’ का मुद्दा
बीजेपी के नेता हाल के दिनों में अपनी जनसभाओं और बयानों में, खासकर सीमांचल के जिलों (किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार) में, बांग्लादेश से होने वाली कथित घुसपैठ और उससे हो रहे ‘जनसांख्यिकीय बदलाव’ (Demographic Change) का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं। बीजेपी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय संसाधनों से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा बताकर मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश कर रही है। यह बीजेपी का एक पुराना और परखा हुआ चुनावी मुद्दा रहा है।
JDU क्यों हुई असहज? नीतीश के ‘सेक्युलर’ वोट बैंक पर है नजर
बीजेपी के इस आक्रामक रुख ने जेडीयू के भीतर बेचैनी बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पूरी राजनीति ‘विकास पुरुष’ और एक ‘सेक्युलर’ नेता की छवि पर बनाई है। बिहार में मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा, जो आरजेडी का परंपरागत वोटर नहीं है, वह नीतीश कुमार के चेहरे पर जेडीयू को वोट देता आया है। जेडीयू को चिंता है कि बीजेपी द्वारा ‘घुसपैठ’ जैसे ध्रुवीकरण वाले मुद्दे को हवा देने से यह मुस्लिम वोट बैंक उससे छिटक सकता है और या तो आरजेडी-कांग्रेस की तरफ या फिर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की तरफ जा सकता है।
Bihar Chunav: CAA-NRC की याद दिला रहा है यह मुद्दा
जेडीयू के नेता निजी तौर पर यह भी मान रहे हैं कि ‘घुसपैठ’ का मुद्दा असल में विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की बहस को चुनाव में वापस लाने की एक कोशिश है। इन मुद्दों पर पहले भी नीतीश कुमार को एक मुश्किल राजनीतिक संतुलन साधना पड़ा था। वह दोबारा इन विवादों में नहीं पड़ना चाहते और चुनाव को पूरी तरह से ‘विकास’ और ‘सुशासन’ के अपने एजेंडे पर केंद्रित रखना चाहते हैं।
क्या NDA में सब कुछ ठीक नहीं है?
यह वैचारिक मतभेद एनडीए गठबंधन के भीतर की दरार को उजागर करता है। जहां बीजेपी अपने कोर एजेंडे और हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़कर ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाहती है, वहीं जेडीयू सामाजिक सद्भाव और विकास के अपने मॉडल पर चुनाव लड़ना चाहती है। रणनीति में यह अंतर चुनाव के नजदीक आने पर और भी बढ़ सकता है, जिसका फायदा उठाने के लिए विपक्षी महागठबंधन पूरी तरह से तैयार बैठा है।