Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में लेफ्ट का 'JNU मॉडल', दिल्ली-बंगाल से आ रहे 400 युवा नेता, घर-घर जाकर करेंगे प्रचार
दिल्ली-बंगाल से आए युवा CPI-ML, CPI, CPI-M के प्रचारक घर-घर जाकर करेंगे जनसंवाद, नुक्कड़ नाटक से मुद्दे उठाएंगे

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की लड़ाई अब और भी दिलचस्प होने जा रही है। एक तरफ जहां एनडीए और महागठबंधन के बड़े नेता रैलियां और जनसभाएं कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, वामपंथी दलों (CPI-ML, CPI, CPI-M) ने चुनाव प्रचार के लिए एक अनूठी और जमीनी रणनीति बनाई है। महागठबंधन के ये सहयोगी दल, इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए दिल्ली के जेएनयू (JNU), पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से अपने 400 से अधिक युवा और अनुभवी नेताओं को बिहार के चुनावी मैदान में उतार रहे हैं।
नुक्कड़ नाटक और घर-घर प्रचार पर रहेगा जोर
वाम दलों की यह 400 नेताओं की टीम बिहार के गांव-गांव और कस्बों में जाकर डेरा डालेगी। ये नेता बड़ी रैलियां करने की बजाय, सीधे जनता से जुड़ने पर फोकस करेंगे। इनकी रणनीति में घर-घर जाकर प्रचार करना (door-to-door campaigning), पर्चे बांटना, और ‘नुक्कड़ नाटक’ (street plays) के माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुंचाना शामिल है। जेएनयू से आ रहे छात्र नेता, जो अपनी भाषण कला और वैचारिक बहस के लिए जाने जाते हैं, वे गांवों की चौपालों पर युवाओं के साथ संवाद करेंगे और सरकार की नीतियों पर बहस करेंगे।
‘जंगलराज’ के जवाब में ‘जनसंवाद’ की रणनीति
एनडीए द्वारा लगातार उठाए जा रहे ‘जंगलराज’ के मुद्दे की काट के लिए, लेफ्ट पार्टियों ने ‘जनसंवाद’ की रणनीति अपनाई है। ये 400 नेता जनता के बीच जाकर बेरोजगारी, महंगाई, बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे जमीनी मुद्दों को उठाएंगे। वे लोगों को यह बताने की कोशिश करेंगे कि असली ‘जंगलराज’ एनडीए के शासन में है, जहां युवाओं के पास रोजगार नहीं है और महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है।
Bihar Election 2025: 2020 के प्रदर्शन को दोहराने का लक्ष्य
2020 के विधानसभा चुनाव में, सीपीआई-माले (CPI-ML) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 19 में से 12 सीटें जीती थीं और महागठबंधन को एक मजबूत सहारा दिया था। इस बार, लेफ्ट पार्टियां अपने उसी प्रदर्शन को न केवल दोहराना चाहती हैं, बल्कि उससे भी आगे निकलना चाहती हैं। दिल्ली और बंगाल से आ रही यह अनुभवी टीम पार्टी के स्थानीय काडर का मनोबल बढ़ाने और चुनाव अभियान को और अधिक आक्रामक और संगठित बनाने का काम करेगी। यह जमीनी स्तर की रणनीति एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।