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हड़ताली संविदा कर्मियों पर FIR करने का स्वास्थ्य बिभाग ने दिया निर्देश, संविदा कर्मी की जुबानी जानें पूरी कहानी

शेखपुरा जिला सहित बिहार राज्य के सभी निविदा स्वास्थ्य कर्मी अपनी मांगों के समर्थन में होम आइसोलेशन में हैं। जिसके कारण राज्य भर में कोरोना टीकाकरण और जांच अभियान प्रभावित हो रहा है। इसको लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति ने सभी सिविल सर्जन को पत्र भेजकर ड्यूटी से नदारद या कार्य में बाधा पहुंचाने वाले संविदा कर्मियों पर FIR करने अथवा उन्हें संविदा मुक्त करने का निर्देश जारी किया गया है। राज्य स्वास्थ्य समिति ने यह भी कहा है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा कर्मी के द्वारा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को भी कार्य करने से मना किया जा रहा है। इस संबंध में शेखपुरा सिविल सर्जन डॉ कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह ने बताया कि इसके लिए सभी MOIC से ऐसे सभी कर्मियों का रिपोर्ट मांगा गया है। रिपोर्ट आने के बाद सभी के ऊपर विभाग के निर्देशानुसार कार्रवाई की जाएगी।

संविदा कर्मी ने बयां किया अपना दर्द
दूसरी तरफ नाम नहीं छापने की शर्त पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एक संविदा कर्मी ने बताया कि हम लोग नियमित कर्मियों की तरह अपनी सेवा दे रहे हैं। हर दिन कोरोना संक्रमितों के बीच ड्यूटी कर रहे हैं। बावजूद इसके राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं का लाभ हमें नहीं मिल रहा है। नियमित स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना संक्रमण में ड्यूटी के दौरान मृत्यु पर बीमा एवं परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही गई है। साथ ही उन्हें संक्रमण काल में ड्यूटी करने पर अतिरिक्त दैनिक भत्ता भी राज्य सरकार दे रही है। जबकि समान कार्य करने के बाद हम लोगों को इन सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में कैमूर जिले में कार्यरत बीरबल कुमार नामक एक संविदा कर्मी कोरोना संक्रमित हो गए थे। जिसके बाद उन्हें बिहार में इलाज के लिए बेड तक नहीं मिल सका। सभी संविदा कर्मियों ने चंदा इकट्ठा कर बनारस के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज करवाया, जहां कुछ दिनों के इलाज के बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया। ऐसे में हमलोग अपना व अपने परिवार की चिंता कर रहे हैं, तो इसमें क्या गलत है? उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार भी स्वास्थ्य हमारा मौलिक अधिकार है और हम कोरोना संक्रमितों के बीच रहने के बाद अपने आप को होम आइसोलेट कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं, तो इसमें क्या गलत है? उन्होंने कहा कि हमारे संघ के द्वारा कई बार राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया था। जिसके बाद भी सुनवाई नहीं हुई। मजबूरन हमे इस तरह का निर्णय लेना पड़ा।

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