
Bihar Politics: बिहार की सियासत में इन दिनों ‘भूंजा पार्टी’ और ‘जीजा-जमाई आयोग’ की चर्चा जोरों पर है। सोशल मीडिया से लेकर गलियों तक, हर तरफ लोग इस नए विवाद पर बात कर रहे हैं। आखिर क्या है यह भूंजा पार्टी और 2,60,000 रुपये प्रति महीने की सैलरी वाला जीजा-जमाई आयोग? आइए, आसान शब्दों में समझते हैं।
भूंजा पार्टी क्या है?
बिहार में ‘भूंजा पार्टी’ कोई आधिकारिक राजनीतिक दल नहीं है, बल्कि यह एक तंज है, जो विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और अन्य नेताओं ने सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (JDU) और उनके सहयोगियों पर कसा है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट्स के मुताबिक, विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ‘अचेत अवस्था’ का फायदा उठाकर कुछ नेता अपने रिश्तेदारों को सरकारी आयोगों में ऊंची सैलरी वाली नौकरियां दे रहे हैं। इसे ही ‘भूंजा पार्टी’ का नाम दिया गया है, जिसका मतलब है कि सत्ताधारी लोग अपने परिवार वालों को ‘भूंजा’ (फायदा) बांट रहे हैं।
जीजा-जमाई आयोग का विवाद
विपक्ष का दावा है कि बिहार में कई आयोगों में नेताओं के दामाद और जीजा को 2,60,000 रुपये प्रति महीने की सैलरी वाली नौकरियां दी जा रही हैं। इसमें केंद्रीय मंत्री, बिहार सरकार के मंत्रियों और सांसदों के रिश्तेदारों के नाम शामिल हैं। उदाहरण के लिए, विपक्ष ने रामविलास पासवान के दामाद, जीतन राम मांझी के दामाद और JDU के मंत्री अशोक चौधरी के दामाद को आयोगों में नियुक्त करने का आरोप लगाया है। इन नियुक्तियों को ‘जमाई आयोग’ और ‘जीजा आयोग’ का नाम देकर विपक्ष ने सरकार पर परिवारवाद का आरोप लगाया है।
युवाओं में नाराजगी
बिहार के युवा इस मुद्दे पर खासा नाराज हैं। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि जब बिहार में बेरोजगारी चरम पर है, तब नेताओं के रिश्तेदारों को लाखों रुपये की नौकरियां देना गलत है। तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा, “जमाई आयोग के बाद अब जीजा आयोग भी बनाना चाहिए।” उनका कहना है कि नीतीश कुमार की कमजोर स्थिति का फायदा उठाकर कुछ लोग बिहार को लूट रहे हैं।
Bihar Politics: सरकार का जवाब
हालांकि, JDU और सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह मामला बिहार की जनता के बीच गुस्सा बढ़ा रहा है, खासकर उन युवाओं में जो नौकरी की तलाश में हैं।
बिहार की सियासत पर असर
यह विवाद बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। विपक्ष इसे 2025 के विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है। अगर यह चर्चा और बढ़ी, तो नीतीश कुमार और उनकी सहयोगी पार्टियों को जनता के सवालों का जवाब देना पड़ सकता है।