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Indus Waters Treaty: भारत ने खारिज किया मध्यस्थता कोर्ट का फैसला, पश्चिमी नदियों पर पूर्ण अधिकार की बात

भारत ने मध्यस्थता कोर्ट को अवैध बताया, पश्चिमी नदियों पर पूर्ण अधिकार की बात, पाकिस्तान को झटका

Indus Waters Treaty: भारत ने सिंधु जल संधि पर मध्यस्थता अदालत के ताजा फैसले को सिरे से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है कि यह अदालत न तो वैध है और न ही इसका कोई कानूनी आधार है। भारत ने साफ किया कि वह जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर कोर्ट के फैसले को नहीं मानता। यह खबर बिहार, उत्तर प्रदेश, और अन्य राज्यों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पानी और बिजली जैसे मुद्दों से जुड़ी है। आइए जानते हैं इस खबर का पूरा ब्योरा।

मध्यस्थता कोर्ट को क्यों बताया अवैध?

विदेश मंत्रालय ने कहा कि मध्यस्थता कोर्ट का गठन ही सिंधु जल संधि 1960 का उल्लंघन करता है। भारत ने इस कोर्ट को कभी मान्यता नहीं दी। मंत्रालय ने इसे पाकिस्तान की चाल बताया, जो आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों का गलत इस्तेमाल करता है। अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को निलंबित कर दिया था। भारत का कहना है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को पूरी तरह बंद नहीं करता, तब तक संधि लागू नहीं होगी।

Indus Waters Treaty: सिंधु जल संधि क्या है?

सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। इसके तहत भारत को रावी, सतलुज और ब्यास नदियों का पूरा पानी मिला, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी दिया गया। भारत इन पश्चिमी नदियों पर बिजली बनाने के लिए परियोजनाएं बना सकता है, लेकिन पानी रोक नहीं सकता। भारत का कहना है कि किशनगंगा और रतले परियोजनाएं संधि के नियमों के तहत हैं, लेकिन पाकिस्तान इन्हें रोकने की कोशिश कर रहा है।

भारत का अगला कदम क्या?

भारत ने कहा कि वह अपनी संप्रभुता के तहत पश्चिमी नदियों पर पूर्ण अधिकार रखता है। विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि कोई भी अवैध कोर्ट भारत के फैसलों की जांच नहीं कर सकता। भारत ने विश्व बैंक से भी इस मामले में हस्तक्षेप न करने को कहा है। सरकार अब इन नदियों पर और परियोजनाएं शुरू करने की योजना बना रही है, जिससे जम्मू-कश्मीर में बिजली और पानी की आपूर्ति बढ़ेगी।

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