राजनीति

बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी तेज, विभिन्न दलों और गठबंधन से आने वाले प्रत्याशियों को लेकर चर्चाएं जोरों पर

जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है। वैसे-वैसे बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी भी तेज होती जा रही है। गांव के चौपालों से लेकर शहर के मोहल्ले एवं टोलो में विभिन्न दलों एवं गठबंधनों से आने वाले प्रत्याशियों के नामों को लेकर चर्चाएं भी जोर पकड़ने लगी है। यहां के मतदाता अपने-अपने चहेते लोगों को उम्मीदवार बनाने के लिए उनके नामों को हवा देने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। जिससे बरबीघा विधानसभा क्षेत्र अभी से ही चुनावी रंगों में रंगने लगे हैं। कुछ लोग प्रत्याशी बनने के चक्कर में दल-बदल भी करने लगे हैं। ऐसे तो कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाला बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में जद यू लगातार दो बार वर्ष 2005 और 2010 में कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका देते हुए अपने प्रत्याशी को विजयी बनाने में कामयाब रही। 2005 में जदयू टिकट पर डॉ आर आर कनौजिया और 2010 में गजानंद शाही विजयी घोषित किए गए। पिछले चुनाव में भाजपा से तालमेल खत्म हो जाने के बाद जद यू के महागठबंधन के साथ दोस्ती के कारण बरबीघा सीट जो उसकी सीटिंग सीट थी, उसे कांग्रेस के लिए छोड़नी पड़ी और यहां से राजो सिंह के पौत्र सुदर्शन कुमार महागठबंधन उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस टिकट पर विजयी रहे। इधर फिर से राजनीति ने करवट बदली और कांग्रेस के वर्तमान में विधायक सुदर्शन कुमार ने भी जदयू का दामन थाम लिया। जिससे अन्य संभावित कांग्रेस प्रत्याशियों का रास्ता साफ हो गया चुका है।

गजानंद शाही जो यहां से 2010 में जदयू के टिकट पर चुनाव जीते थे। अचानक जदयू को छोड़ कांग्रेस में चले गए। इनके कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद इस दल से इन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना प्रबल हो गई है। लोगों का मानना है कि जरूर कोई उच्च स्तरीय वार्ता कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ होने के बाद गजानंद शाही ने अपना पाला बदला है। अपने मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव के कारण जनता के बीच इनकी पहचान को झुठलायाा नहीं जा सकता। क्योंकि दूसरी बार यहां के विधायक नहीं रहने के बाद भी इन्होंने जनता से लगातार संपर्क बनाए रखने में कोई कमी नहीं की।

इधर नगर परिषद, ग्राम पंचायत, विधानसभा, विधान परिषद एवं लोकसभा चुनावों में हमेशा किंगमेकर की भूमिका अदा करने वाले कांग्रेसी नेता त्रिशूलधारी सिंह ने भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में आने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक के बाद इनका उत्साह और भी अधिक बढ़ता जा रहा है। इन्होंने कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। वर्ष 1995- 96 में इन्हें प्रखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। पर बाद के दिनों में ये जदयू के साथ हो गए। लेकिन वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में जद यू ने जब इन्हें पार्टी का टिकट नहीं दिया तो इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी मैदान में उतर कर अपने बलबूते करीब 16 हजार मत प्राप्त कर क्षेत्र में जो अपनी जो पहचान बनाई है। उसे झूठलाया भी नहीं जा सकता। इधर भारतीय खेत मजदूर कांग्रेस से जुड़े राजकुमार शर्मा भी कांग्रेस के टिकट के दावेदारों की होड़ में है। इनके अलावा इस पार्टी से अन्य कई दावेदार हैं, जो पटना से लेकर दिल्ली का चक्कर काट रहे हैं।

इधर बरबीघा की धरती के पुत्र और बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. डॉ श्री कृष्ण सिंह के प्रपौत्र अनिल शंकर सिन्हा जो राजद के प्रदेश महासचिव भी हैं। इस बार ये भी महागठबंधन से तालमेल के तहत राजद टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं।पिछले चुनाव में इन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। बिहार में इस पार्टी का कोई जनाधार नहीं होने के बाद भी इन्होंने करीबी 5000 मत प्राप्त कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। इसी आधार पर इनका भी अपना दावा है।

उधर पिछले चुनाव में रालोसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले एनडीए प्रत्याशी शिवकुमार इस बार जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण सिंह की पार्टी से मैदान में आने का मन बना रहे हैं। पिछले चुनाव में ये दूसरे नंबर पर थे। इनके पक्ष में कई स्टार प्रचारक भी आ चुके थे।

टिकट पाने की लालसा में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जदयू का दामन थामने वाले बरबीघा के वर्तमान विधायक सुदर्शन कुमार इस बार जदयू से चुनावी मैदान में आना चाह रहे हैं।

जद यू से टिकट पाने के लिए पार्टी के वर्तमान जिलाध्यक्ष अंजनी कुमार भी एड़ी चोटी एक कर दिया है। गैर राजनीतिक परिवार से होने के बाबजूद 15 सालों से पार्टी की सेवा कर रहे अंजनी कुमार राज्यसभा सदस्य एवं जद यू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह के काफी करीबी माने जाते हैं। जिलाध्यक्ष बनने के बाद क्षेत्र में काफी मेहनत भी की है।

वहीं क्षेत्र के प्रख्यात नेत्र रोग विशेषज्ञ, समाजसेवी एवं लॉकडाउन के समय जरूरतमंदों की मदद करने में आगे रहने वाले डॉ राकेश रंजन जो जद यू के बरबीघा विधानसभा क्षेत्र प्रभारी भी हैं वे भी यहां से चुनाव लड़ने के लिए जोर लगा रहे हैं।

वहीं लोजपा से पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के करीबी और भाजपा से लोजपा तक का लम्बा सफर तय कर चुके मधुकर कुमार उर्फ डॉ साहेब भी इस बार कमर कस चुके हैं और उनके कार्यकर्त्ता उनका टिकट कन्फर्म होने की बात भी कर रहे हैं। नवादा सांसद के हालिया बयानों ने इस बात को हवा भी दी है।

इस बार भाजपाइयों का भी टिकट का डिमांड है। भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का मानना है कि पहले कम से कम यहां से एक सांसद हुआ करते थे। लेकिन मौजूदा समय में ना तो भाजपा के पास कोई सांसद है और ना ही कोई विधायक है। पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता इस बात को लेकर काफी मायूस हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि नवादा लोकसभा क्षेत्र जिसमें बरबीघा विधानसभा भी है, यह सीट लोजपा को दे दिया गया और वहां से लोजपा के सांसद हैं। इसी तरह से इस जिले का शेखपुरा विधानसभा जमुई लोकसभा में है और वहां के सांसद भी लोजपा के चिराग पासवान हैं। जबकि शेखपुरा विधानसभा से जदयू से विधायक रणधीर कुमार सोनी हैं।

ऐसी स्थिति में बरबीघा विधानसभा सीट भाजपा के खाते में होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो भाजपाइयों में मायूसी होगी। भाजपा उम्मीदवार के रूप में भाजपा नेत्री डॉ पूनम शर्मा और पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष संजीत प्रभाकर इसके लिये प्रयासरत हैं।

भाजपा से कुछ बाहरी चेहरा भी रेस में शामिल हैं। वहीं तेउस गांव के स्व लाला बाबू के परिजन मुकेश कुमार भी इस बार बरबीघा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं।

गौरतलब है कि कृष्ण मोहन प्यारे सिह उर्फ लाला बाबू यहां के विधायक के अलावा राज्यसभा सदस्य भी रह चुके थे। इनके अलावा बरबीघा विधानसभा क्षेत्र से कई अन्य युवा तुर्क नेता दलीय एवं निर्दलीय प्रत्याशी बनने की होड़ में हैं।

शेरपर गांव निवासी आम आदमी पार्टी के जिलाध्यक्ष धर्मउदय कुमार जो हमेशा जनता की विभिन्न समस्याओं को लेकर यहां चर्चाओं में रहे हैं, इस बार इसी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर यहां से भाग्य आजमाने के लिए अभी से ही अपना प्रचार प्रसार शुरू कर दिया है। ऐसे जो भी हो इस बार बरबीघा में विधानसभा का चुनाव काफी दिलचस्प होगा और कई नए-पुराने चेहरे मैदान में होंगे।

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