Delhi News: सुप्रीम कोर्ट का 'चौंकाने वाला' कदम, ECI और केंद्र को भेजा नोटिस, राजनीतिक दलों से मांगा ये बड़ा जवाब
सुप्रीम कोर्ट का सवाल- राजनीतिक दल अपने सारे नियम-कानून वेबसाइट पर सार्वजनिक क्यों नहीं करते?
Delhi News: देश की राजनीति में पारदर्शिता लाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को एक ‘चौंकाने वाला’ और बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) और केंद्र सरकार को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि देश के सभी राजनीतिक दल अपने ज्ञापन, नियम और विनियमों (Rules and Regulations) को अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर प्रकाशित करें।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले पर चुनाव आयोग, विधि मंत्रालय और विधि आयोग से जवाब मांगा है। यह ‘शॉकिंग’ मांग एक आवेदन के जरिए की गई है, जिसे अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पहले से लंबित एक जनहित याचिका में दायर किया गया था। यह कदम राजनीतिक दलों की आंतरिक कार्यप्रणाली को जनता के सामने लाने के लिए मजबूर कर सकता है।
Delhi News: क्यों पड़ी इस याचिका की जरूरत?
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल लोकतांत्रिक शासन के महत्वपूर्ण अंग हैं और वे एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ (Public Authority) की तरह काम करते हैं। आवेदन में कहा गया है, “पूरी शासन व्यवस्था राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द घूमती है और वे निरंतर सार्वजनिक कर्तव्य निर्वहन में लगे रहते हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि वे जनता के प्रति जवाबदेह बनें।” (आंतरिक लिंक)
याचिकाकर्ता का तर्क है कि मतदाताओं को यह जानने का पूरा अधिकार है कि जिस पार्टी को वे वोट दे रहे हैं, उसके आंतरिक नियम और सिद्धांत क्या हैं।
‘संविधान’ दिखाते हैं, ‘नियम’ क्यों छिपाते हैं?
याचिका में एक ‘अद्भुत’ और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है। वर्तमान में, कई राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर केवल अपना ‘संविधान’ (Constitution) प्रकाशित करते हैं, लेकिन वे अपने ‘ज्ञापन’ (Memorandum) और उन ‘नियमों और विनियमों’ को छिपाते हैं, जिनके आधार पर पार्टी का वास्तविक संचालन होता है।
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही जनहित में आवश्यक है। यह जानकारी सार्वजनिक होने से मतदाताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि पार्टी के भीतर निर्णय कैसे लिए जाते हैं, पदाधिकारी कैसे चुने जाते हैं, और पार्टी की आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था कैसी है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) का दिया हवाला
यह याचिका राजनीतिक दलों को दिए गए वैधानिक दर्जे पर भी सवाल उठाती है। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) की धारा 29ए के तहत वैधानिक दर्जा दिया गया है। कानून के तहत, उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखें।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह निर्देश देने की मांग की गई है कि चुनाव आयोग अपनी पूरी शक्ति का इस्तेमाल करे। आयोग यह सुनिश्चित करे कि सभी दल RPA की धारा 29बी और 29सी (वित्तीय चंदे और योगदान से संबंधित) का कड़ाई से पालन करें और इस पर एक अनुपालन रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करे।
‘फर्जी’ राजनीतिक दलों पर भी लगेगी लगाम
यह आवेदन जिस मुख्य जनहित याचिका के तहत दायर किया गया है, उसका दायरा और भी बड़ा है। उस मुख्य याचिका में राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार, जातिवाद, सांप्रदायिकता, अपराधीकरण और धन शोधन (Money Laundering) के खतरे को कम करने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की गई थी।
याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि देश में चल रहे “फर्जी राजनीतिक दल” न केवल लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं, बल्कि वे देश की छवि भी खराब कर रहे हैं। याचिका के अनुसार, ये दल “खूंखार अपराधियों, अपहरणकर्ताओं, ड्रग तस्करों और मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों से भारी मात्रा में पैसा लेकर उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पदाधिकारी नियुक्त कर रहे हैं।”
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस से बढ़ी हलचल
सुप्रीम कोर्ट के इस नोटिस ने राजनीतिक दलों के बीच हलचल मचा दी है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र में एक ‘अद्भुत’ और ऐतिहासिक सुधार होगा। सभी राजनीतिक दलों को मजबूरन अपने वे सभी आंतरिक नियम सार्वजनिक करने होंगे, जिन्हें वे अब तक जनता की नजरों से दूर रखते आए हैं। अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के जवाब पर टिकी हैं।




