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Bihar Chunav 2025: नीतीश कुमार की 'महिला रोजगार योजना' बनीं आत्मनिर्भरता का प्रतीक, जानें कैसे बदल रही बिहार की तस्वीर

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का 'महिला सशक्तिकरण' मॉडल एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है। 'जीविका' जैसी योजनाओं के माध्यम से लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया है, जिसने राज्य की सामाजिक और आर्थिक संरचना को बदल दिया है।

Bihar Chunav 2025: बिहार, जो कभी सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के लिए जाना जाता था, आज एक “मूक क्रांति” (Silent Revolution) का गवाह बन रहा है। इस क्रांति की ध्वजवाहक राज्य की महिलाएं हैं, जो अब सिर्फ घरों की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता का एक नया अध्याय लिख रही हैं। इस बड़े बदलाव का श्रेय काफी हद तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पिछले डेढ़ दशकों में लागू की गई ‘महिला रोजगार योजनाओं’ को दिया जा रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025) के इस गरमागरम माहौल में, एनडीए (NDA) के लिए यह योजनाएं एक प्रमुख ‘ट्रंप कार्ड’ साबित हो रही हैं।

जीविका’ (Jeevika) ने बदली लाखों की तकदीर

नीतीश कुमार के ‘महिला सशक्तिकरण‘ मॉडल का सबसे मजबूत स्तंभ ‘जीविका’ (Jeevika) योजना यानी बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रोजेक्ट (BRLP) है। 2007 में शुरू हुई इस योजना ने ग्रामीण बिहार की महिलाओं की जिंदगी बदल कर रख दी है। यह योजना विश्व बैंक द्वारा समर्थित है और इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups – SHGs) से जोड़ना है।

शुरुआत में कुछ जिलों से शुरू हुई यह पहल आज एक विशाल आंदोलन बन चुकी है, जिससे 1 करोड़ से अधिक महिलाएं सीधे तौर पर जुड़ी हैं। इन समूहों के माध्यम से महिलाओं को न केवल छोटे कर्ज (Micro-credit) आसानी से मिल जाते हैं, बल्कि उन्हें मुर्गी पालन, बकरी पालन, सिलाई-कढ़ाई, हस्तशिल्प और कृषि आधारित छोटे उद्योग शुरू करने के लिए प्रशिक्षण और एक बाजार भी मिलता है। यह योजना सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक संबल भी बनी है।

आर्थिक आत्मनिर्भरता से बढ़ा आत्मविश्वास

इन योजनाओं का सबसे बड़ा प्रभाव महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता के रूप में सामने आया है। जो महिलाएं पहले घर के छोटे-छोटे खर्चों के लिए भी पति या परिवार पर निर्भर थीं, वे आज ‘जीविका दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं और महीने का हजारों रुपये कमा रही हैं। यह आर्थिक स्वतंत्रता उनके आत्मविश्वास में बदल गई है।

वे अब न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण करने में बराबर की भागीदार हैं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी खर्च कर रही हैं। कोरोना काल में भी, इन्हीं ‘जीविका दीदियों’ ने मास्क और सैनिटाइजर बनाकर राज्य की जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह आत्मनिर्भरता ही नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित राजनीति का मुख्य आधार है।

सिर्फ रोजगार नहीं, सामाजिक सम्मान भी

नीतीश कुमार की इन योजनाओं ने महिलाओं को पैसे कमाने का जरिया देने के साथ-साथ समाज में उनकी स्थिति को भी मजबूत किया है। स्वयं सहायता समूहों की साप्ताहिक बैठकों ने महिलाओं को घर से बाहर निकलने, अपनी बात रखने और संगठित होने का मौका दिया। इसका असर यह हुआ है कि अब वे घरेलू हिंसा, बाल विवाह और दहेज जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठा रही हैं। परिवार और गांव के फैसलों में उनकी भागीदारी बढ़ी है। पंचायत चुनावों में 50% आरक्षण ने इस सशक्तिकरण को राजनीतिक आवाज भी दी है।

चुनाव 2025 में ‘साइलेंट वोटर’ की अहम भूमिका

बिहार की राजनीति को करीब से समझने वाले मानते हैं कि नीतीश कुमार का ‘महिला वोट बैंक’ एक ‘साइलेंट’ लेकिन सबसे मजबूत वोट बैंक है। यही कारण है कि एनडीए (NDA) अपने घोषणापत्र और रैलियों में इन महिला रोजगार योजनाओं की सफलता का जिक्र प्रमुखता से कर रहा है। एक तरफ जहां महागठबंधन रोजगार के बड़े वादे कर रहा है, वहीं एनडीए ‘जीविका’ जैसी योजनाओं के माध्यम से “किए गए काम” को सामने रख रहा है।

कुल मिलाकर, नीतीश कुमार की महिला रोजगार योजनाओं ने बिहार की महिलाओं को सिर्फ लाभार्थी नहीं, बल्कि ‘आत्मनिर्भर’ बनाकर उन्हें राज्य के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है। यही कारण है कि ये योजनाएं आज बिहार में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी हैं।

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