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स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लाप/रवाही, पटना में मिला भारी मात्रा में बायो मेडिकल वेस्ट, आमलोगों के स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़

कोरोना काल से ही चल रहा है राजधानी में बायो मेडिकल कचरे का अवै/ध कारोबार..स्वास्थ्य विभाग बेखबर

Desk: राजधानी पटना में स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है। आम जनमानस के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ का बड़ा मामला उजागर हुआ है। इसमें कई बड़े अस्पतालों के कर्मचारियों की मिलीभगत भी हो सकती है। दरअसल पटना के फुलवारी शरीफ में भारी मात्रा में बायो मेडिकल वेस्ट बरामद हुआ है। जिसमें काँच व प्लास्टिक की ग्लूकोज की बोतलें, इंजेक्शन और सिरिंज, दवाओं की खाली बोतलें व उपयोग किए गए आईवी सेट, दस्ताने सहित तमाम तरह के बायोमेडिकल बेस्ट मिले हैं। यहां तक की काफी संख्या में गर्भ का प्लेसेंटा, राजधानी के मशहूर पारस हॉस्पिटल जैसे विभिन्न अस्पतालों की रिपोर्टें, रसीदें व अस्पताल की पर्चियाँ भी बरामद हुई हैं। जो स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही को दर्शाते हैं।

स्थानीय मीडिया के द्वारा इस बात की जानकारी मिलते ही स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ प्रदूषण कंट्रोल के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे। इतनी भारी मात्रा में बायो मेडिकल वेस्ट को देखकर वे भी भौचक्के रह गए। आलाधिकारियों को भी इस बात की जानकारी दी गई। जिसके बाद नाकामी को छुपाने के लिए आईजीआईएमएस के बायो मेडिकल वेस्ट सर्विस प्रोवाइडर संगम मेडिवर्स प्राइवेट लिमिटेड को सभी मेडिकल बेस्ट को उठाकर उनका उचित निपटान करने का आदेश दिया गया। अब इस मामले में दोषियों पर कितनी कार्रवाई होगी ये तो आनेवाला वक़्त ही बतायेगा?

इसको लेकर क्या कहते हैं अधिकारी?
इस सम्बंध में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी मनोरंजन सिंह ने बताया कि इतनी भारी मात्रा में बायो-मेडिकल कचरा मिलना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे आम जनमानस के जीवन पर काफी खतनाक असर हो सकता है। इस कचरे से भूजल भी प्रदूषित हो सकता है। जिससे कई तरह की बीमारियों के फैलने का खतरा है। वहीं फुलवारी शरीफ सरकारी अस्पताल के MOIC ने कहा कि इस कचरे में जो सामग्री मिली है उनका उपयोग सरकारी अस्पतालों में नहीं होता है। बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पतालों में ही इनका इस्तेमाल होता है। ये साफ-साफ उन अस्पतालों की लापरवाही का मामला है। उन्होंने भी इस इलाके में बीमारियों के खतरे से इंकार नही किया।

अधिकारियों को देखकर भागते मजदूर

स्थानीय लोगों ने क्या कहा?
यहां के स्थानीय निवासियों ने बताया कि कोरोना काल से ही यह अबैध कारोबार चल रहा है। इसमें स्थानीय लोग भी मिले हुए हैं। एक बार पूर्व में भी हमलोग आग लगाकर भगा दिए थे। फिर दूसरी जगह यह कारोबार शुरू हो गया। दूसरी तरफ सूत्रों के हवाले से बताया गया कि बड़े-बड़े अस्पताल के कर्मचारी, जिनको बायो मेडिकल कचरे के निपटारे की जिम्मेदारी दी जाती है। वे चंद रुपयों की खातिर उन्हें कबाड़ी वाले को बेच देते हैं। जहां कबाड़ी वाले कचरे में से 20% कचरे को चुनकर रख लेते हैं और बाकी कचरे को शहर के विभिन्न इलाकों में फेंक दिया जाता है। बाद में उन 20% कचरे को रीसाइकलिंग प्लांट में भेजा जाता है। जहां उनका रीसाइकलिंग कर ग्रामीण इलाके के छोटे-छोटे अस्पतालों में बेच दिया जाता है। छोटे-छोटे अस्पताल फिर से उनका इस्तेमाल मरीजों पर करते हैं, जो उनके लिए प्राण घातक भी साबित हो सकता है। वहीं बाकी के 80 फीसदी कचरे भी लोगों ल स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालते हैं।

निरीक्षण करते स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी

क्या है बायो- मेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste)
बायो- मेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste) के अंतर्गत स्वास्थ्य संस्थानों (जैसे कि अस्पताल, प्रयोगशाला, प्रतिरक्षण कार्य, ब्लड बैंक आदि) में इंसानी और जानवर के शारीरिक सम्बन्धी बेकार वस्तु (waste) और इलाज के लिए उपयोग किए उपकरण आते हैं। इस कचरे में काँच व प्लास्टिक की ग्लूकोज की बोतलें, इंजेक्शन और सिरिंज, दवाओं की खाली बोतलें व उपयोग किए गए आईवी सेट, दस्ताने और अन्य सामग्री होती हैं। इसके अलावा इनमें विभिन्न रिपोर्टें, रसीदें व अस्पताल की पर्चियाँ आदि भी शामिल होती हैं।

मेडिकल कचरे को उठाने आये वाहन

इससे क्या हो सकता है नुकसान ?
बायोमेडिकल कचरा हमारे-आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं। इससे न केवल और बीमारियाँ फैलती हैं बल्कि जल, थल और वायु सभी दूषित होते हैं। ये कचरा भले ही एक अस्पताल के लिये मामूली कचरा हो, लेकिन भारत सरकार व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार यह मौत का सामान है। ऐसे कचरे से इनफेक्सन, एचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होने का भी डर बना रहता है। अस्पतालों से निकलने वाला कचरा काफी घातक होता है। खुले में फेंकने से प्रयोग की गई सूई और दूसरे उपकरणों के पुनः इस्तेमाल से संक्रामक बीमारियों का खतरा बना रहता है। सामान्य तापमान में इसे जलाकर खत्म भी नहीं किया जा सकता है। अगर कचरे को 1,150 डिग्री सेल्सियस के निर्धारित तापमान पर भस्म नहीं किया जाता है। तो यह लगातार डायोक्सिन और फ्यूरान्स जैसे आर्गेनिक प्रदूषक पैदा करता है, जिनसे कैंसर, प्रजनन और विकास संबंधी परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं। ये न केवल रोग प्रतिरोधक प्रणाली और प्रजनन क्षमता पर असर डालते हैं, बल्कि ये शुक्राणु भी कम करते हैं और कई बार मधुमेह का कारण भी बनते हैं।

मौके पर पड़ा पारस अस्पताल का रसीद

कैसे और कहाँ होता है इसका उचित निपटान?
अस्पताल के कचरों में से 85% खतरनाक नहीं होते और शेष 15% से जानवरों और इंसानों में कई प्रकार की बीमारियां फ़ैल सकती हैं। इसलिए इन बायो-मेडिकल वस्तुओं के पुनर्चक्रण (recycle) पर जोर दिया जाता है जिससे प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों का निर्माण होगा। बिहार में इसके लिए मात्र एक बायो-मेडिकल कचरा प्रबंधन (Bio-medical waste management) केंद्र है। जो राजधानी पटना के IGIMS में चलता है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कई कम्पनियों को टेंडर जारी किया गया है। जो अस्पतालों से बायो-मेडिकल कचरा को उठाकर यहां पहुँचाते हैं। फिर उनका उचित प्रबंधन किया जाता है।

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