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क्यूँ मनाया जा रहा गिरिहिण्डा महोत्सव? 800 फीट ऊँची चोटी पर प्राचीन कामेश्वर नाथ मंदिर की आखिर क्या है खासियत?

Sheikhpura: सोमवार 13 मार्च को जिला मुख्यालय स्थित गिरिहिंडा पहाड़ स्थित बाबा कामेश्वर नाथ मंदिर के प्रांगण में जिला विशेष महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। इसे गिरिहिण्डा महोत्सव नाम दिया गया है। इसको लेकर जिला प्रशासन के द्वारा पुरजोर तैयारी की गई है। इस अवसर पर अरघौती पोखर से मंदिर तक कलश यात्रा भी निकाला जाएगा। जिसमें स्थानीय महिला एवं पुरुष श्रद्धालु भाग लेंगे। जिसके बाद भगवान शिव की विधिवत पूजा के साथ संध्या 5 बजे से मुख्य कार्यक्रम का शुभारंभ होगा।

कार्यक्रम को भव्य बनाने को लेकर की जा रही तैयारियों का आज जिलाधिकारी सावन कुमार ने खुद जायजा लिया। उनके साथ एसडीओ कुमार निशांत व स्थानीय समाजसेवी शम्भू यादव सहित अन्य अधिकारी व कर्मी मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम को लेकर कई जरूरी दिशा-निर्देश भी दिया। भगवान शिव पर केंद्रित इस महोत्सव से जहाँ इस ऐतिहासिक स्थल को एक नई पहचान मिलेगी, वहीं दूसरी ओर पर्यटन केंद्र के रूप में भी इसकी पहचान बनेगी।

800 फीट ऊँची चोटी पर है शिव-पार्वती का प्राचीन मंदिर
बता दें कि गिरिहिंडा पहाड़ शेखपुरा जिले की पहचान है। जहाँ 800 फीट ऊँची चोटी पर शिव-पार्वती का एक प्राचीन मंदिर अवस्थित है।जिन्हें बाबा कामेश्वर नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में ही हुआ था। इतिहासकारों के मुताबिक हिडिंबा नामक दानवी इस पहाड़ के शिखर पर निवास करती थी। पांडव पुत्र भीम अपने निर्वासन काल में अपने सभी भाइयों एवं माता कुंती के साथ कुछ वक्त के लिए इस पहाड़ पर ठहरे थे। इसी दौरान महाबली भीम ने हिडिंबा के साथ गंधर्व विवाह किया था। जिससे घटोत्कच नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।

क्यों? इसका नाम कामेश्वर नाथ मंदिर रखा गया
एक मान्यता के मुताबिक गदाधारी भीम ने ही गिरिहिंडा पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना की थी। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव के आदेश से भगवान विश्वकर्मा ने रातों-रात इस मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि इस शिवलिंग की खोज कामेश्वरी लाल नामक एक स्थानीय व्यक्ति के द्वारा की गई। जिसने शिवलिंग को यहां से कहीं अन्यत्र ले जाने का प्रयास भी किया था, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली।आखिरकार उन्होंने हार मानकर भगवान शिव से क्षमा याचना की। कालांतर में उन्हीं के नाम पर इस शिव-पार्वती मंदिर का नाम कामेश्वर नाथ मंदिर रखा गया। आसपास के क्षेत्रों में यह इसी नाम से विख्यात हो गया।

श्रद्धालुओं की मनोकामना होती है पूर्ण
आज भी यह मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष कई मौकों पर यहां बड़े स्तर पर मेले का आयोजन होता है। भगवान शिव के प्रिय सावन एवं भादो माह में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। पूर्णिमा के दिन भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। अन्य विशेष अवसरों पर भी श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ की सजावट देखते बनती है।

रमनीकता के कारण बना पिकनिक स्पॉट
यह स्थल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण तो है ही, साथ ही अपनी इस स्थल रमनीकता के कारण यह पिकनिक स्पॉट के रूप में भी काफी प्रसिद्ध है। नए वर्ष का जश्न हो या कोई भी अन्य महत्वपूर्ण अवसर, यहाँ के लोगों के लिए यह स्थल मनपसंद स्थल के रूप में जाना जाता है। पहाड़ों पर स्थित होने के कारण यहां की छटा देखते ही बनती है। इसी ऐतिहासिकता को देखते हुए जिला प्रशासन इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। गिरिहिंडा महोत्सव इसी प्रयास की एक कड़ी है। जिला प्रशासन के इस महती प्रयास को अमली जामा पहनाने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। अधिक से अधिक संख्या में इस कार्यक्रम में भाग लेकर जिला प्रशासन के इस ऐतिहासिक आयोजन को सफल बनाने का प्रयास करें।

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