कड़ाके की ठंढ के बीच माता सरस्वती की प्रतिमा बनाने में सपरिवार जुटे हैं मूर्तिकार, दिन भर मिट्टी पानी से गीले रहते हैं हाथ
Sheikhpura: पिछले कई दिनों से जिले में कड़ाके की ठंढ पड़ रही है। शीतलहर ने लोगों का घरों से निकलना मुश्किल कर दिया है। बाजारों में ब्लोअर, हीटर व गीजर की बिक्री बढ़ गई है। ठंडे पानी को छूते ही जैसे लोगों को करेंट लग रहा है। वहीं इन सबके बीच दिन भर मिट्टी-पानी में अपने हाथ गीले कर ये कलाकर मूर्तियां बनाने में व्यस्त हैं। करीब 2 महीने से ये लोग अपनी पुश्तैनी रोजगार में लगे हैं। घर की महिलाएं भी इस कार्य में पुरुषों का हाथ बंटा रही हैं।
दरअसल बसंत पंचमी त्योहार आने में अब महज 13 दिन शेष बचा हुआ हैं। इस वर्ष 26 जनवरी को सरस्वती पूजा और गणतंत्र दिवस एक साथ मनाया जाएगा। सरस्वती पूजा से ठीक पहले बरबीघा में तमाम मूर्तिकार विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति बनाने में जोर-शोर से जुटे हुए हैं। जैसे-जैसे पूजा का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे मूर्तिकार के हाथ भी तेज़ रफ्तार से चल रहे हैं। सभी मूर्तिकारों का घर-आंगन इन दिनों मूर्तियों से भरा पड़ा है।
पिछले दो वर्ष कोरोना काल के कारण मूर्तिकारों को नुकसान का सामना करना पड़ा था। इस वर्ष अच्छी आमदनी की आस है। इस बाबत मूर्तिकार सुरेंद्र कुमार ने बताया कि आजीविका के लिए पत्नी के साथ सपरिवार पुश्तैनी काम में दिन-रात जुटे हुए हैं। सभी प्रतिमाएं लगभग बनकर तैयार हो गई हैं।सूखने के बाद सभी को रंग-पेंट कर सजाया जाएगा। धूप नहीं निकलने के कारण सूखने में समय लग रहा है। ठंढ के कारण काम करने की रफ्तार भी कम है। समय से पूर्व सभी प्रतिमाओं को तैयार कर लिया जाएगा।
उसने बताया कि कोरोना के बाद अब उम्मीद है कि कुछ बेहतर कारोबार होगा। एक माह पूर्व से ही मूर्तियों की बुकिंग हो गई है। पहले तो मिट्टी आसानी से उपलब्ध हो जाता था। वहीं अब मिट्टी भी खरीदनी पड़ रही है। इतना ही नहीं मूर्ति में लगने वाले रंग से लेकर तमाम साधन जुटाने में भी उन्हें खासी रकम खर्च करनी पड़ती है। इसमें जो मुनाफा होता है, उसी से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। साक्षात भगवान को अपने हाथों से गढ़ने वाले इन मूर्तिकारों को सरकार से कोई विशेष मदद न मिलने का मलाल है।