
सिर्फ 115 दिन में तैयार हो जाएगी बासमती धान की यह प्रजाति, किसानों की आय बढ़ाएगी ज्यादा पैदावार
भारत से एक्सपोर्ट होता है सबसे अधिक बासमती चावल, किसानों को होती है अच्छी कमाई, पूसा बासमती 1692 सबसे ज्यादा लाभदायक
खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान की रोपाई का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में लोगों की नजर सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट होने वाले बासमती पर है। अगर किसानों को कम समय में अधिक उत्पादन लेना है तो वो पूसा बासमती 1692 के बीज का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह कम अवधि वाली फसल है। सिर्फ 115 दिन में तैयार हो जाती है। जल्दी ही तैयार होने के कारण किसान बाकी समय में उसी खेत में अन्य उपज पैदाकर ज्यादा लाभ कमा सकते हैं। पूसा बासमती 1509 की तुलना में प्रति एकड़ 5 क्विंटल ज्यादा पैदावार मिलेगी और पांच दिन पहले तैयार हो जाती है। इस प्रजाति में चावल ज्यादा टूटता नहीं, करीब 50 फीसदी खड़ा चावल निकलता है। दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बासमती जीआई (Geographical Indication) क्षेत्र के लिए इसकी अनुशंसा की गई है।
किसानों की आय बढ़ाने वाली किस्म
पूसा ने इस वैरायटी को जून 2020 में विकसित किया है। बताया गया है कि एकदम नई किस्म होने की वजह से इसके बीज की सीमित उपलब्धता ही होगी. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक किसानों की आय सिर्फ फसलों के दाम बढ़ने से नहीं बल्कि फसल की पैदावार ज्यादा होने से भी बढ़ती है। इसलिए यह किस्म किसानों के लिए लाभदायक साबित होगी। पूसा कृषि मेले में भी काफी किसानों ने इसका बीज खरीदा था।
सबसे अधिक होता है बासमती चावल का एक्सपोर्ट
भारत न सिर्फ बासमती का सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि निर्यातक भी है। बासमती के मुरीद दुनिया के करीब डेढ़ सौ देश हैं। एपिडा के मुताबिक सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपये के चावल का एक्सपोर्ट हो रहा है। औसतन 15 हजार करोड़ रुपये का गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट होता है। देश के सात राज्यों हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग मिला हुआ है।