धर्म और आस्थाबिहारशेखपुरासम्पादकीय

रंगों का त्योहार है होली, आपसी कटुता को भूलकर एक दूसरे को गले लगाने का है पर्व, शांति, भाईचारे और सौहार्द का देता है सन्देश

होली रंगों का त्योहार है। ये शांति, भाईचारे और सौहार्द का सन्देश देता है। ये भारत का एक मात्र ऐसा त्योहार जो विदेशों में भी काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। रंगों के इस त्योहार की तैयारी लोग कई दिन पहले से करना शुरू कर देते हैं। बाजारों में रौनक बढ़ जाती है। रंगों की दुकानों से पूरा बाजार होलीमय हो जाता है।

बरबीघा प्रखण्ड के तोयपर गांव में फगुआ गाते ग्रामीण

गांवों में महीनों पहले से ग्रामीण मंडली फाग गाने लगते हैं। बच्चों को स्कूलों से छुट्टी मिल जाती है। छुट्टी की घोषणा होते ही बच्चे स्कूल के सभी दोस्तों के साथ होली खेलते हैं। सभी सरकारी और गैरसरकारी कार्यालयों में भी होली मिलन समारोह मनाया जाता है।

शेखपुरा के संस्कार पब्लिक स्कूल में एक दूसरे को रंग लगाती छात्राएं

हालांकि कोरोना के कारण पिछले साल की तरह इस बार भी हमें इन खुशियों से बंचित होना पड़ा। असली होली की शुरुआत एक दिन पहले होलिका दहन से होती है। ऐसा मानना है कि इस दिन शाम में लोग होलिका के साथ-साथ द्वेष, ईर्ष्या और अपनी बुरी आदतों को भी जलाते हैं। दूसरे दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं। ढोल-मंजीरे बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग अपने आपसी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और रिश्तों की डोर को एक बार फिर से मजबूत बनाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है।

बाजार में रंग-अबीर बेचते बच्चे

इसके बाद स्नान के बाद थोड़ा विश्राम और फिर शाम में शुरू होता है अबीर-गुलाल वाली होली। लोग नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते और खाते हैं।

वृंदावन की लट्ठमार होली

राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही। पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। किसी ने कहा है रंगों का हमारे जीवन से गहरा रिश्ता है। रंग हमारे जीवन के सभी पहलुओं को दर्शाता है। सोचो! अगर ये रंग न होते तो हमारा जीवन कैसा होता। पर आज के इस अर्थयुग में होली के मायने बदल गए हैं। कहीं होलिका दहन में ईर्ष्या और द्वेष की जगह जिंदा आदमी ही जलाया जा रहा है। कहीं मिठाइयों ने शराब का रूप ले लिया है। तो कहीं होली असली रंग से खेली जा रही है। आपसी कटुता को भूलने की जगह लोग एक दूसरे को भूलने लगे हैं। सामाजिकता की जगह राजनीति ने जन्म ले लिया है। लोग ये भूल गए हैं कि ये त्योहार हमारे जीवन में खुशियां लेकर आता है। पूर्वजों के बनाये नियम के अनुसार हमें इन त्योहारों के असली उद्देश्य को समझना होगा। हमें प्रकृति के बनाये इन रंगों से जीवन के रहस्यों को सीखना होगा। हमें होली मनाना एक बार फिर से सीखना होगा।

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