बिहार में एपीएमसी 2006 में ही खत्म कर दी गई है। इससे यहां के किसानों की आय लगातार गिरी हैं। देश में बिहार के किसान सबसे कम आय वाले लोग हैं, जबकि जिन राज्यों के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पा रहे हैं, वे बेहतर कमाई कर पा रहे हैं। पहली बार बिहार के किसानों से दलहन खरीदने की बात हो रही है। ये बातें रालोसपा के राष्ट्रीय महासचिव राहुल कुमार ने कही है।
उन्होंने कहा कि रालोसपा दिल्ली और देश के दूसरे राज्यों में आंदोलन कर रहे किसानों और उनके सवालों के साथ खड़ी है। रालोसपा नेता ने कहा कि कृषि को बड़े कारोबारियों के हाथों में सौंपने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि देश भर में देशी-विदेशी कंपनियां पहले से ही किसानों के खाद-बीज पर कब्ज़ा जमाए बैठे हैं और मनमाने रेट पर किसानों को देते हैं। इससे किसान की लागत वैसे ही बढ़ गयी है और अब सरकार किसानों की उपज को भी प्राइवेट कंपनियों को देना चाहती है, ऐसे में किसान कहाँ जाएगा? रालोसपा नेता ने कहा कि नये कृषि बिलों से सरकार न्यनूतम समर्थन मूल्य प्रणाली को ही खत्म कर देगी। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था।
जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब नये विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है। समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है। यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है। रालोसपा नेता ने कहा कि यह सुनने में अच्छा लग सकता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे। लेकिन जिन किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे? सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा।
उन्होंने कहा कि पहले किसानों को कंपनियां ज्यादा पैसा देंगी और एक बार जब सरकारी खरीद खत्म होने लगेगा तब वही कंपनियां कम दाम देंगी। इससे किसान धीरे धीरे खेती छोड़ेंगे और अंततः यही कंपनियां किसानों से जमीन लेकर खेती करेंगी और अंत में खेत कंपनियों की जागीर हो जाएंगी।