नेपाल ने चीनी कंपनी को दिए नए नोट छापने के ठेके, भारत के साथ नक्शा विवाद फिर गरमाया
नए नेपाली नोटों पर भारत के विवादित क्षेत्रों वाला नक्शा, रिश्ते में तनाव बढ़ा।

International News: नेपाल ने अपने नए नोट छापने का बड़ा ठेका चीनी कंपनी को सौंप दिया है। यह फैसला भारत के साथ सीमा विवाद को फिर से भड़का रहा है। नेपाल राष्ट्रीय बैंक ने 50, 500 और 1000 नेपाली रुपये के नए नोट डिजाइन करने, छापने और सप्लाई करने का काम चीन की बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन को दिया है। समस्या यह है कि इन नोटों में नेपाल का नया नक्शा छपा है, जिसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा इलाकों को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है। यह विवाद 2020 से चल रहा है, लेकिन अब नोटों के जरिए और तेज हो गया। आम लोगों के लिए आसान शब्दों में कहें तो नेपाल के पैसे पर छपा नक्शा भारत को पसंद नहीं आया। इससे दोनों देशों के रिश्ते में तनाव बढ़ सकता है। नेपाल का कहना है कि 1816 के सुगौली संधि के मुताबिक ये इलाके उसके हैं।
नेपाल के नए नोटों का ठेका: चीनी कंपनी को मिली जिम्मेदारी
नेपाल राष्ट्रीय बैंक (एनआरबी) ने सबसे कम बोली के आधार पर चीनी कंपनी को चुना। यह कंपनी पहले भी नेपाल के 5, 10, 100 और 500 रुपये के नोट छाप चुकी है। ठेके के तहत कंपनी को 9 महीने में नोट डिलीवर करने हैं। एनआरबी के प्रवक्ता गुरु प्रसाद पौडेल ने कहा, “चीनी कंपनी डिजाइन तैयार करती है, जो मंजूरी के बाद छापी जाती है।” खासकर 1000 रुपये के नोट के लिए 43 करोड़ नेपाली रुपये का लेटर ऑफ अवार्ड मिला। इस नोट पर नेपाल के राष्ट्रीय फूल लाली गुर्लस (रोडोडेंड्रॉन) की सात तस्वीरें होंगी, जो देश के सात प्रांतों का प्रतीक हैं। साथ ही एनआरबी के गवर्नर प्रोफेसर डॉ. विश्वनाथ पौडेल के हस्ताक्षर भी होंगे। यह कदम नेपाल की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए है, लेकिन भारत के साथ विवाद ने इसे जटिल बना दिया। छोटे व्यापारी और आम नागरिक जो इन नोटों का इस्तेमाल करेंगे, उन्हें नक्शे का विवाद समझना जरूरी है।
नोटों में नया नक्शा: कालापानी और लिपुलेख पर क्यों झगड़ा?
मुख्य मुद्दा नोटों पर छपा नेपाल का नया नक्शा है। इसमें महाकाली नदी के पूर्व में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। भारत इन्हें अपना मानता है। गुरुवार को एनआरबी ने 100 रुपये के नोट जारी किए, जिनमें यह नक्शा है। नेपाल का दावा है कि सुगौली संधि 1816 के अनुसार ये इलाके उसके हैं। 2020 में केपी शर्मा ओली सरकार ने यह नक्शा अपनाया था, जिसे संसद ने मंजूर किया। पिछले दो साल से 1 और 2 रुपये के सिक्कों पर भी यही नक्शा है। भारत ने 2020 में इसे “एकतरफा और अस्वीकार्य विस्तार” कहा था। अब नए नोटों से विवाद फिर भड़क गया। नेपाल के लोग इसे अपनी सीमा की रक्षा मानते हैं, जबकि भारत के लिए यह चुनौती है।
भारत-नेपाल नक्शा विवाद: प्रतिक्रियाएं और इतिहास
भारत ने 2020 में नेपाल के नक्शे पर कड़ी आपत्ति जताई थी। अब नए नोटों पर कोई नया बयान नहीं आया, लेकिन पुरानी नाराजगी बरकरार है। नेपाल के प्रवक्ता ने ठेके की बात तो की, लेकिन नक्शे पर चुप्पी साधी। यह विवाद दोनों देशों के बीच पुराना है। सुगौली संधि के बाद से सीमा पर बहस चलती रही। नेपाल इसे अपनी संप्रभुता का सवाल मानता है। चीनी कंपनी का शामिल होना क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकता है। भारत और नेपाल के रिश्ते भाईचारे जैसे हैं, लेकिन ऐसे मुद्दे उनमें दरार डालते हैं। आम सीमावासी जो रोजाना आवागमन करते हैं, वे सबसे ज्यादा परेशान होते हैं।
विवाद के असर: रिश्तों पर क्या पड़ेगा बोझ?
यह ठेका और नक्शा नेपाल की सीमा दावों को मजबूत करने की कोशिश है। इससे भारत-नेपाल संबंधों में तनाव बढ़ेगा। चीनी कंपनी का रोल दक्षिण एशिया की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। दोनों देशों को बातचीत से हल निकालना चाहिए। नेपाल के लोग चाहते हैं कि विकास पर फोकस हो, न कि झगड़े पर। अगर विवाद सुलझा, तो व्यापार और पर्यटन बढ़ेगा। भारत ने हमेशा नेपाल की मदद की है, लेकिन सीमा मुद्दे पर सख्ती बरतनी पड़ती है।



